राजनीति के गलियों में निर्भया की माता रोती है।
राजनीति के मद में जिसने शोषण यूं भरपूर किया।
आंखों के अरमानों को उसने ही चकनाचूर किया।
उसकी टेढ़ी चालों ने कैसे कैसे मजबूर किया।
आज देख लो कर्म पंथ से मुझको जिसने दूर किया।
उसकी समर प्रतिज्ञा को तोड़ो तोड़ो मत देर करो।
उसकी पापों की दुनियां में दीप बुझा अंधेर करो।
आज छोड़ता हूं राहों को कल जो फिर से आऊंगा।
परशुराम की कसम मुझे है तेरा सूर्य डुबाऊंगा।
आरक्षण संगरक्षण जाती घोर घराना मजहब को।
राजनीति में लाते हैं सब अपने अपने मतलब को।
मैंने देखा है काला सच अक्सर स्वेत दुशालों का।
कागज़ पर थी सड़क उकेरी लाल पानी था नालों का।
बहुत सहजता से देखा है लूट मचाती राजनीत।
बिना बात के बातों पर दंगा भड़काती राजनीत।
राजनीति के गलियों में ही गौ हत्या भी होती है।
राजनीति के गलियों में निर्भया की माता रोती है।
दीपक झा रुद्रा
Swati chourasia
26-Jan-2022 07:45 AM
वाह बहुत ही खूबसूरत रचना लाजवाब👌
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